यदि आप बिहार में रहते हैं या बिहार के बारे में थोड़ा बहुत भी जानते हैं तो आपको यह पता होगा कि बिहार में बेरोजगारी कितनी बड़ी समस्या है और फिर भी बिहार के युवा व्यापार नहीं करते जैसे लोग गुजरात, महाराष्ट्र, कर्णाटक जैसे राज्यों में लोग करते हैं। भारत में हज़ारों की संख्या में स्टार्टअप बिज़नेस शुरू होते हैं और अभी 110 से अधिक ऐसे स्टार्टअप हैं जिनका मौद्रिक मूल्यांकन करीब 8000 करोड़ से अधिक है यानि ये सारे स्टार्टअप्स यूनिकॉर्न स्टार्टअप्स हैं और आपको यह जानकर शायद दुःख होगा कि इन 100 से अधिक यूनिकॉर्न स्टार्टअप्स में एक भी बिहार का नहीं है और यदि है भी तो वह किसी अन्य राज्य से चल रहा है।
आपने यह भी सुना होगा कि बिहार के युवा सिर्फ सरकारी नौकरी के पीछे पागल हैं और इसके पीछे लॉजिक यह दिया जाता है कि यहाँ की सामाजिक व्यवस्था ही ऐसी है या फिर सरकारी नौकरी में सुरक्षा अधिक है इसलिए युवा इसके प्रति अधिक आकर्षित होते हैं।
और देखा जाए तो यह कुछ हद तक सही भी है परन्तु यह पूर्ण रूप से सत्य नहीं है और यह आधा सत्य भी नहीं है, यह बहुत सारे कारणों में से 1-2 कारण है। तो आखिर बिहार इतना पिछड़ा हुआ क्यों है और यहाँ के लोग व्यापार से इतना दूर क्यों भागते हैं?
बिहार में व्यापार की हालत क्या है
किसी भी राज्य में व्यापारिक गतिविधियां कितनी हो रही हैं ये पता करने का सबसे आसान तरीका यह है कि आप उस राज्य से GST कलेक्शन कितना हो रहा है यह देख लें।
बिहार भारत में सबसे युवा राज्यों में से एक है और जनसँख्या लगभग 12 करोड़ के आस पास है। जनसँख्या के मामले यह उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद तीसरे नंबर पर है। किन्तु आपको जानकर हैरानी होगी कि बिहार से GST कलेक्शन मार्च 2024 में मात्र 1,991 करोड़ रुपया ही है और यह कितना कम है इसका अंदाज़ा आप इस बात से लगाइये कि हमारे पडोसी और हमारे जैसे ही राज्य उड़ीसा का कलेक्शन 5,109 करोड़, पश्चिम बंगाल का 5,473 करोड़, झारखण्ड का 3,243 करोड़, मध्य प्रदेश का 3,974 करोड़, छत्तीसगढ़ का 3,143 करोड़, उत्तर प्रदेश का 9,087 करोड़ है। सबसे अधिक कलेक्शन 27,688 करोड़ रुपये है महाराष्ट्र का। ऊपर गिनाये गए उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र को यदि छोड़ दिया जाय तो बाकि सारे राज्यों की जनसँख्या हमारे बिहार से कम है और इसमें से अधिकतर राज्य बिहार की ही तरह गरीब माने जाते हैं, फिर भी इनका GST कलेक्शन हमसे कहीं अधिक है। और चूँकि GST सामान के खरीदारी के समय लगता है तो यह आंकड़ा यह भी बताता है कि बिहार में लोगों के पास क्रय शक्ति कितनी कम है।
बिहार व्यापर के लिए अनुकूल क्यों नहीं है
यदि आप यही प्रश्न बिहार के किसी नेता को पूछेंगे तो सबसे संभावित उत्तर यह है जो नेता जी दे सकते हैं कि बिहार एक भूमिबद्ध प्रदेश है अर्थात् यह चरों तरफ से भूमि से घिरा हुआ है और कोई कारण में जातिवाद, पक्ष-विपक्ष पर आरोप-प्रत्यारोप होगा। लेकिन ये बहुत ही साधारण से कारण हैं और ऐसा प्रतीत होता है जैसे कुछ बहाने बनाये जा रहे हों अपनी नाकामी को छुपाने के लिए, क्योंकि भारत के लगभग आधे राज्य स्थलरुद्ध ही हैं जिनमें से बहुत सारे काफी प्रगतिशील हैं।
तो बिहार व्यापार के लिए अनुकूल क्यों नहीं है उसके कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
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पूँजी की कमी:
बिहार में ऐसा नहीं है कि पूंजीपति नहीं हैं लेकिन वो बहुत ही कम हैं। सच्चाई यह है कि बिहार के आधे से अधिक आबादी की आय सालाना 50000 रुपयों से भी कम है। ऐसे में बिहार की जनता 2 वक्त की रोटी भी बहुत बड़ी बात लगती है तो वो व्यापर करने का जोखिम क्या ही उठा पाएंगे।
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शिक्षा का अर्थ डिग्री:
यहाँ दसवीं के बाद शायद ही कोई बच्चा सही मायने में पढता है। करीब 90 प्रतिशत बच्चे सिर्फ डिग्री लेकर घूम रहे हैं। और बहुत सारे तो ऐसे हैं जिनको यह भी नहीं पता है कि उनके पास किस चीज़ की डिग्री है। और इस तरह से डिग्री लेकर सिर्फ रट्टा मार के सरकारी नौकरी लेने से आसान कुछ नहीं है। यहाँ उच्च शिक्षा के लिए मूलभूत सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में युवा कुछ नया कैसे करे जब उनको कुछ पता ही नहीं है बजाय मुग़ल कालीन के नवाबों के नाम के।
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महँगी जमीन:
बिहार में कोई भी बड़ी कंपनी निवेश करना नहीं चाहती क्योंकि यहाँ कुछ नहीं होते हुए भी छोटे छोटे शहरों में जमीन की कीमत करोड़ों में है। जितने पैसे में किसी अन्य राज्य में 1000 एकड़ भूमि अधिग्रहित हो सकती है उतने पैसे में यहाँ 100 एकड़ जमीन भी मिलना कठिन है। और इसका मुख्य कारण है अत्यधिक जनसँख्या। बिहार की जनसँख्या संसाधनों के हिसाब से देखा जाए तो 2-3 करोड़ से अधिक नहीं होनी चाहिए जबकि यहाँ की जनसँख्या 12 करोड़ के आस पास है। एक छोटा सा जिला नवादा की जनसँख्या भी 20 लाख से अधिक है जो कि भूटान देश की जनसँख्या से लगभग 3 गुना अधिक है।
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सरकारी बाबुओं का मकड़जाल:
बिहार में सरकारी बाबुओं के तो क्या ही कहने। यहाँ आपको एक बिजली कनेक्शन लेने के लिए भी सरकारी बाबुओं को पैसा खिलाना पड़ेगा और नहीं तो 3-4 महीने आप घूमते रहिये। छोटे-छोटे काम जो ऑनलाइन हो जाने चाहिए उसके लिए ऑनलाइन करने के बाद भी सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाने पड़ते हैं लेकिन कोई सुनने वाला नहीं होता जबतक आप चाय-पानी का प्रबंध नहीं करते।
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सरकार की उदासीनता:
जहाँ भारत के कई राज्य की सरकारें अपनी जनता को व्यापार करने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं उनको तरह तरह की स्कीम और सब्सिडी उपलब्ध करवा रही है वहीँ बिहार की सरकार अभी भी इन सब के प्रति बहुत उदासीन है। उसका एक उदहारण समझिये की यदि आपने बिहार में व्यापर करने की हिम्मत जुटा भी ली तो आपको राज्य सरकार के तरफ से शायद ही कोई लाभ मिलेगा। यहाँ तक की बिजली कनेक्शन के लिए भी हर महीने फिक्स्ड चार्ज देना होगा और जितनी बिजली आप खपत करेंगे उसका बिल अलग से लगेगा। अब यह किसी भी लघु उद्योग के लिए दोहरी मार से कम नहीं है जो पहले से ही पूँजी की कमी से परेशान है।
यदि आप बिहार में उद्यम करते हैं तो आपको सबकुछ अपने बुद्धि कौशल से करना पड़ेगा क्योंकि सरकार के तरफ से न तो आपको कोई सहायता मिलेगी न ही कोई सुविधा। बिहार सरकार पिछले सालों से 10लाख तक का ऋण तो दे रही है लेकिन उसमें भी इतने सारे किन्तु परन्तु हैं कि वो भी बस एक छलावा ही प्रतीत होता है।
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समाज:
बिहार में आप लोगों को अक्सर यह कहते सुनेंगे कि सरकारी नौकरी का 10000 भी व्यापर के 1 लाख से कहीं अधिक अच्छा है। और बिहार के समाज की यही मानसिकता ही बिहारी युवा को जोखिम उठाने के लिए हतोत्साहित करती है। बिहार में लोग अपने बच्चे की नौकरी की तयारी के लिए लाखों खर्च कर देंगे शादी में अपने जीवन की सारी जमा पूंजी उड़ा देंगे परन्तु उन्हें व्यापार करने के लिए 10000 देने से भी मना कर देंगे। और फिर भी यदि आप अपने आप को मजबूत रखकर व्यापार करने की ठान ही लेते हैं तो आपको आपके गांव के या आपके कोई सरकारी बाबू रिश्तेदार समझाने के लिए पहुँच जायेंगे जैसे आप कोई अपराध की राह पर चल पड़े हों। और हाँ यहाँ नौकरी सिर्फ वेतन या पेंशन के लिए नहीं की जाती है बल्कि ऊपर की कमाई के लिए की जाती है और बिहार के समाज को इससे कोई दिक्कत नहीं है।




